कल का दफ़्न सूरज
आज शर्मीली आँखो से
ओस भरी मैदान की तलाश मे
अपने किर्णो को बिखेर रहा है |
धूल से लदी यह फ़िज़ा,
कभी खाँसते तो कभी चीखते हुए,
इधर उधर गलियों मे भटक रही है,
कि कोई आवारा मित्र मिल जाए |
एक हमारा मित्र,
मस्ती मे मग्न
सपनो के संसार मे डूबा,
क्षण भर का इतिहास रचे जा रहा है |
की कुछ नर्म, कुछ सख़्त,
गालो को गुदगुदते हुए,
उसके कानो पे फुसफुरते हुए बोल पड़ा -
"शुरू हो गया है | अब चलते हैं | "
आँख मूंदकर देखा तो,
न भय दिखा न क्रोध,
होंठो पर खिलती ही मुस्कान,
और आँखो पर दुख की निशान |
नींद से ग्रस्त टांगे,
अभी रेंगने को तैयार न थे,
कसकर अपने कंधो पर,
लादकर चल पड़े वो थे |
"अच्छा अब तो बताओ,
क्या वही पुराना खेल है ?
हफ्ते भर की क़ैद,
और फिर लाशों का ढेर है ?"
"हाँ, इंसान मे बसा
हैवान का दहाड़ है |
जलते हुए सपनो
की चींखती हुई पहाड़ है |"
"अब मे समझा -
वो मुझसे हैं, जो अपनाते हैं
कट्पुतलियों को, मगर
फिर खेलकर, उन्हे दफनाते हैं |"
"बनाया था उसने,
की रहे जहाँ दो दिलो की मेल है,
सही कह रहा है तू -
इनके लिए तो हम बस खेल हैं | "
यह पोस्ट इस प्रतियोगिता के लिए है - A picture can say a thousand words.. WriteUpCafe.com
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